Friday, July 4, 2025
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खजाने के लिए खिलजी ने विक्रमशिला को किया था ध्वस्त:15 साल से सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने का नीतीश-मोदी कर रहे वादा, एक ईंट भी नहीं रखी

‘साथियों, हमारा ये भागलपुर, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण रहा है। विक्रमशिला विश्वविद्यालय के कालखंड में ये वैश्विक ज्ञान का केंद्र हुआ करता था। हम नालंदा विश्वविद्यालय के प्राचीन गौरव को आधुनिक भारत से जोड़ने का काम शुरू कर चुके हैं। नालंदा विश्वविद्यालय के बाद अब विक्रमशिला में भी सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाई जा रही है। जल्द केंद्र सरकार इस पर काम शुरू करने वाली है।’

यह बातें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 24 फरवरी को भागलपुर दौरे के दौरान कही थी। मगर यह पहली बार नहीं है जब विक्रमशिला यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने के वादे किए गए हो। इससे पहले भी नीतीश कुमार ने 2010 और पीएम मोदी ने 2015 में इसके जीर्णोद्धार की बात कही थी, लेकिन 15 साल बाद भी इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने के लिए एक ईंट तक नहीं रखी गई है।

इस रिपोर्ट में पढ़िए, विक्रमशिला यूनिवर्सिटी के इतिहास, स्थिति, अबतक के काम और फंसे मामलों के बारे में…।

सबसे पहले जानिए, किस हालत में है यूनिवर्सिटी

विक्रमशिला यूनिवर्सिटी में अभी पढ़ाई नहीं होती है, क्योंकि यह पूरी तरह से खंडहर है। यहां कोई स्टूडेंट या कर्मचारी नहीं है। बस टूरिस्ट स्पॉट के रूप में लोग यहां पर घूमने आते हैं। मगर इसके पहले इसी साल किराए के भवन में यहां कक्षा संचालित करने की बात कही गई थी।

भागलपुर डीएम नवल किशोर चौधरी ने दो महीने पहले कहा था, ‘छात्रों की नामांकन प्रक्रिया शुरू करने को लेकर पहल हो रही है। बिहार एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी (BAU) के भवनों में कक्षाएं संचालित हो सकती हैं। जब विक्रमशिला यूनिवर्सिटी बन जाएगी, तब छात्रों को वहां शिफ्ट कर दिया जाएगा।’ हालांकि, यह क्लास अभी तक शुरू नहीं हुई है।

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2017 में तात्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने विक्रमशिला यूनिवर्सिटी स्मारक का दौरा किया था। (फाइल फोटो)

वरिष्ठ पत्रकार दीपक कोचगवे ने बताया, ‘पिछले 15 सालों से यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाने की बात कही जा रही है, लेकिन आज तक सिर्फ नेताओं के वोट बैंक की भेंट ही चढ़ी है। 2015 में ही 500 करोड़ का बजटीय प्रावधान किया गया था। मगर अभी तक सिर्फ जमीन का निरिक्षण ही किया गया है। फंड जारी नहीं हुआ।’

अब तक सिर्फ जमीन की हुई है पड़ताल

जमीन की जांच पड़ताल कर रिपोर्ट सरकार को सौंप दी गई है। परशुरामचक, अंतीचक और मलखपुर की करीब 200 एकड़ जमीन का निरीक्षण किया गया है। यहां 150 आदिवासी परिवार रहते हैं। वहीं, आसपास जंगल एरिया है, जहां 3000 पेड़ों को काटना होगा। अंतीचक की जमीन दो पार्ट में है। दोनों के बीच सड़क और रेलवे लाइन गुजरती है। यह जमीन बाढ़ और जलजमाव प्रभावित है और जमीन पर अतिक्रमण भी है। केंद्रीय टीम आकर साइट विजिट कर चुकी है।

अब कहानी, विक्रमशीला यूनिवर्सिटी के इतिहास की…

भागलपुर से करीब 40 किलोमीटर दूर कहलगांव के पास अंतीचक गांव में पाल वंश के राजा धर्मपाल ने 8वीं शताब्दी में विक्रमशिला यूनिवर्सिटी की स्थापना की थी।

इतिहासकार शिव शंकर सिंह पारिजात ने बताया, ‘एक बार राजा अंतीचक-पत्थघट्टा घूमने गए थे और वहां गंगा किनारे के खूबसूरत नजारे पर इतना फिदा हो गए कि उसी समय उन्होंने यहां एक विहार बनाने का फैसला कर लिया। यहां गंगा नदी उत्तर वाहिनी है। इस यूनिवर्सिटी की स्थापना के साथ राजा गंगा के मार्ग से कनेक्टिविटी भी चाहते थे।’

तिब्बती इतिहासकार लामा तारानाथ ने अपनी किताब ‘लामा तारानाथ्स हिस्ट्री ऑफ बुद्धिज्म’ में लिखा है, ‘धर्मपाल बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। उन्होंने विक्रमशिला विहार के केन्द्र में 108 मंदिरों के बीच एक विशाल मंदिर बनवाया था, जहां शिक्षा दी जाती थी। इसकी ख्याति न केवल भारत बल्कि दक्षिण-पूर्व एशिया, खासकर तिब्बत तक फैली थी, जहां से बड़ी संख्या में छात्र पढ़ने आते थे।’

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विक्रमशिला यूनिवर्सिटी की खंडहर इमारत।

एडमिशन के लिए देना होता था एंट्रेंस टेस्ट

उस समय यहां एडमिशन पाना न सिर्फ विदेशी बल्कि भारतीय छात्रों के लिए भी बेहद कठिन होता था। छात्रों को यहां के विद्वान पंडितों (टीचरों) की कसौटी पर खरा उतरना होता था। यहां का सेंट्रल हॉल विज्ञान कक्ष (साइंस लैब) कहलाता था, जिसमें छह महाविद्यालय थे। हर महाविद्यालय के लिए एक द्वार-पंडित यानी प्रशासक को जिम्मेदारी सौंपी गई थी।

लामा तारानाथ के मुताबिक, इन महाविद्यालयों के पहले गेट पर रत्नव्रज, दूसरे गेट पर ज्ञानश्री मित्र, उत्तरी गेट पर भट्टारकनरोपम, दक्षिणी गेट पर प्रज्ञाकर मति, पूर्वी गेट पर रत्नाकर शांति तथा पश्चिमी गेट पर वागीश्वर कीर्ति द्वार-पंडित के रूप में नियुक्त थे। ये द्वार पंडित ही छात्रों की परीक्षा लेते थे और इसमें पास होने पर ही इस यूनिवर्सिटी में नामांकन होता था।’

छात्रों को दी जाती थी ट्यूटोरियल क्लास

इतिहासकार शिव शंकर सिंह पारिजात ने बताया, ‘विक्रमशिला यूनिवर्सिटी में एडमिशन मिलने के बाद शुरू में हर स्टूडेंट को कुछ समय के लिए एक-एक भिक्षु की देखरेख में रखा जाता था। यहां ट्यूटोरियल क्लास होती थी। छात्रों के लिए अलग से क्लास होती थी, जहां वह अपने डाउट पूछ सकते थे। यहां दीक्षांत समारोह भी होता था। राजा खुद चांसलर होते थे और वही छात्रों को डिग्री देते थे।’

तंत्र विद्या से छात्र दूध को शराब में बदल देते थे

उन्होंने बताया, ‘विक्रमशिला यूनिवर्सिटी में तंत्र विद्या की भी पढ़ाई होती थी। तंत्र विद्या का बड़ा केंद्र था। इतिहास के किताबों में लिखा है कि आचार्य अतीश दीपंकर श्रीज्ञान हेड गुरु थे। उनकी देखरेख में स्टूडेंट तंत्र विद्या सीखते थे। दावा किया गया है कि यूनिवर्सिटी में तंत्र विद्या का उपयोग कर एक छात्र ने दूध को शराब में बदल दिया था। इसके बाद काफी विवाद हुआ था। आचार्य दीपांकर ने उस छात्र को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया।’

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पीएम नरेंद्र मोदी और सीएम नीतीश कुमार ने यूनिवर्सिटी का जीर्णोद्धार करने का ऐलान किया है, लेकिन 15 साल बाद भी काम शुरू नहीं हो सका है।

तुर्कों के आक्रमण से जमींदोज हो गई थी यूनिवर्सिटी

विक्रमशिला यूनिवर्सिटी 8वीं शताब्दी में अपनी स्थापना के बाद करीब चार सौ वर्षों तक धर्म, आध्यात्म और ज्ञान के लिए जाना जाता था। मगर 12 वीं शताब्दी के अंत में तुर्कों के आक्रमण से ये पूरी तरह नष्ट हो गया।

शिव शंकर सिंह पारिजात ने बताया,

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जब बख्तियार खिलजी की सेना नालंदा को जलाने के बाद बंगाल की ओर बढ़ रही थी, तब उनकी नजर विक्रमशिला यूनिवर्सिटी पर पड़ी। इसकी आकृति बाहर से देखने पर एक किले जैसी थी। यह चारों तरफ से ऊंची दीवारों से घिरी थी। उन्हें ऐसा लगा कि यहां कई धन-संपत्ति होगी, जिसे लूटा जा सकता है। इसी उद्देश्य से वह आगे बढ़े और विक्रमशिला यूनिवर्सिटी को तबाह कर दिया।QuoteImage

खुदाई के बाद फिर से दुनिया के सामने आई यूनिवर्सिटी

करीब 800 वर्षों तक ये पृथ्वी के गर्भ में इस तरह खो गया कि विद्वान इसके नाम-ओ-निशान को लेकर महज क़यास लगाने पर मजबूर हो गए। इस तरह लंबे समय तक उपेक्षित रहने के बाद 1971-72 से लेकर 1982 तक की अवधि में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के निदेशक डॉ. बीएस. वर्मा के नेतृत्त्व में की गई खुदाई के बाद ही पूरी दुनिया के सामने ये फिर प्रकट हो सका।

सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनने से क्या मिलेगा फायदा

पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व वाईस चांसलर प्रो रास बिहारी प्रसाद सिंह ने बताया, ‘शिक्षा मंत्रालय ने नीतिगत निर्णय लिया था कि अब किसी भी स्टेट यूनिवर्सिटी को सेंट्रल यूनिवर्सिटी नहीं बनाया जाएगा। अब नई यूनिवर्सिटी को ही सेंट्रल यूनिवर्सिटी की मान्यता दी जाएगी। अगर राज्य सरकार जमीन देगी तो सरकार वहां सेंट्रल यूनिवर्सिटी बनाएगी।’

स्टेट यूनिवर्सिटी की तुलना में सेंट्रल यूनिवर्सिटी को ग्लोबल रिकग्निशन मिलती है। UGC की साइट पर उसका नाम आगे रहता है। ऐसी यूनिवर्सिटी को इंटरनेशनल फंडिंग भी मिलती है।

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स्टूडेंट्स को 4 और फायदे

  1. स्टूडेंट को प्लेसमेंट में अधिक महत्त्व दिया जाता है। उनको फाइनेंसियल प्रॉब्लम नहीं होती है। बैंक से लोन आसानी से मिल जाता है।
  2. स्टूडेंट्स को ग्लोबल एक्सपोजर मिलता है। रिसर्च, इंटर्नशिप में उन्हें काफी ज्यादा स्कोप मिलता है। रिसर्च के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फंडिंग दी जाती है।
  3. स्टूडेंट के रिसर्च आर्टिकल अंतरराष्ट्रीय जर्नल में छपते हैं। उन्हें किसी और यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट की तुलना में ग्लोबल पहचान मिलने के ज्यादा चांस होते हैं। दुनियाभर में लेक्चर, सेमिनार, सिम्पोजियम में भाग ले सकते हैं।
  4. विदेश जाने के लिए स्टेट यूनिवर्सिटी से एक ही बार जाने की परमिशन मिलती है, जबकि सेंट्रल यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट अपना 75% अटेंडेंस पूरा करने के बाद एक से ज्यादा बार भी जा सकते हैं।

कर्मचारियों को 2 खास फायदे

  1. कर्मचारियों को भी कई फायदे मिलते हैं। स्टेट यूनिवर्सिटी में रिटायरमेंट 62 साल पर होता है। सेंट्रल यूनिवर्सिटी में 65 साल है।
  2. सेंट्रल यूनिवर्सिटी से रिटायर टीचर भी 70 साल की उम्र तक गेस्ट फैकल्टी की तौर पर पढ़ा सकते हैं।

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