भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) एक और ऐतिहासिक उपलब्धि के लिए तैयार है। श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से ISRO अपने 100वें प्रक्षेपण को अंजाम देगा। यह भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की शानदार यात्रा और सफलता की एक और मिसाल बनेगा।
100 प्रक्षेपणों का सफर: भारत की अंतरिक्ष यात्रा
ISRO की शुरुआत 1969 में हुई, और 1975 में पहला उपग्रह आर्यभट्ट लॉन्च किया गया। इसके बाद भारत ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
- 1980: पहला स्वदेशी रॉकेट SLV-3 के जरिए रोहिणी उपग्रह लॉन्च।
- 2008: चंद्रयान-1 ने भारत को चंद्रमा पर पहुंचाया।
- 2014: मंगलयान ने पहली बार प्रयास में मंगल की कक्षा में प्रवेश किया।
- 2019: चंद्रयान-2 और गगनयान परियोजना की शुरुआत।
अब 2025 में, 100वें प्रक्षेपण के साथ, ISRO भारत को अंतरिक्ष अनुसंधान के नए आयामों पर ले जाने के लिए तैयार है।
क्या खास होगा 100वें प्रक्षेपण में?
- इस मिशन में एक नया सैटेलाइट लॉन्च वाहन (SLV) इस्तेमाल होगा।
- 100वें प्रक्षेपण के जरिए पृथ्वी और अंतरिक्ष की निगरानी के लिए उन्नत तकनीक वाले उपग्रह लॉन्च किए जाएंगे।
- इस मिशन में ग्रीन प्रोपल्शन तकनीक का भी उपयोग होगा, जो पर्यावरण के अनुकूल है।
वैश्विक मंच पर भारत का नाम
ISRO के इस ऐतिहासिक प्रक्षेपण के साथ, भारत ने न केवल वैज्ञानिक क्षेत्र में बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है। इस उपलब्धि से भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊर्जा मिलेगी और इसे अन्य देशों के लिए एक प्रेरणा के रूप में देखा जाएगा।
अंतरिक्ष की ओर भारत का कदम
ISRO के 100वें प्रक्षेपण के साथ, भारत अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में एक नई छलांग लगाने को तैयार है। यह मिशन भारत की तकनीकी क्षमताओं और वैज्ञानिक दृष्टि का प्रतीक होगा।