बिहार विधान सभा, भारत के संघीय ढांचे के तहत बिहार राज्य की विधायी प्रणाली का एक प्रमुख अंग है। यह लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करता है और राज्य के लिए कानून बनाने, नीतियां निर्धारित करने और जनता की समस्याओं को हल करने का प्रमुख केंद्र है। इस लेख में बिहार विधान सभा के इतिहास, संरचना, कार्यप्रणाली, महत्व और चुनौतियों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।
बिहार विधान सभा का इतिहास
बिहार विधान सभा का गठन भारत के संविधान के लागू होने से पहले 1937 में हुआ था। इसे भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत स्थापित किया गया था। उस समय बिहार और उड़ीसा एक संयुक्त प्रांत के रूप में कार्यरत थे। 22 मार्च 1912 को उड़ीसा को अलग राज्य का दर्जा मिला और बिहार प्रांत का निर्माण हुआ। 1947 में भारत की स्वतंत्रता और 1950 में संविधान लागू होने के बाद, बिहार विधान सभा को पूर्ण विधायी अधिकार प्रदान किए गए।
संरचना और गठन
बिहार विधान सभा एक एकसदनीय (unicameral) व्यवस्था है, जिसका मतलब है कि इसके पास केवल एक सदन है। इसका गठन संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत किया गया है।
- सदस्य संख्या: वर्तमान में बिहार विधान सभा में अधिकतम 243 सदस्य होते हैं। इनमें से 38 अनुसूचित जाति (SC) और 2 अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए आरक्षित हैं।
- चुनाव प्रणाली: सदस्यों का चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा होता है।
- कार्यकाल: विधान सभा का कार्यकाल 5 वर्षों का होता है, लेकिन इसे आवश्यकता पड़ने पर भंग किया जा सकता है।
कार्य और जिम्मेदारियां
बिहार विधान सभा का मुख्य कार्य राज्य में कानून बनाना, राज्य की नीतियों का निर्धारण करना और जनता के लिए कल्याणकारी योजनाओं को लागू करना है। इसके प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:
1. विधायी कार्य:
- राज्य के विषयों पर कानून बनाना।
- वित्तीय बजट और विधेयकों को पारित करना।
- आवश्यक संशोधन करना।
2. वित्तीय कार्य:
- राज्य सरकार के वार्षिक बजट पर चर्चा और उसे अनुमोदित करना।
- कर, शुल्क, और अन्य राजस्व स्रोतों के लिए विधेयकों को पारित करना।
3. प्रशासनिक नियंत्रण:
- सरकार की नीतियों और कार्यों की समीक्षा करना।
- मंत्रियों और अधिकारियों से सवाल पूछना और चर्चा करना।
4. विकास कार्य:
- राज्य के विकास के लिए योजनाओं और कार्यक्रमों को मंजूरी देना।
- शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, और बुनियादी ढांचे के लिए नीतियां बनाना।
बिहार विधान सभा भवन का वास्तुशिल्प
पटना में स्थित बिहार विधान सभा भवन का निर्माण 7 फरवरी 1921 को हुआ था। इसे वास्तुशिल्पीय दृष्टिकोण से उत्कृष्ट माना जाता है। यह भवन भारतीय और पश्चिमी शैली का मिश्रण है और इसमें कई ऐतिहासिक घटनाओं का साक्षी बनने का गौरव प्राप्त है।
महत्वपूर्ण घटनाएं
बिहार विधान सभा में कई महत्वपूर्ण ऐतिहासिक निर्णय लिए गए हैं। 1937 में, जब यह पहली बार स्थापित हुआ, तो इसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जनप्रतिनिधियों के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके अलावा, स्वतंत्रता के बाद, भूमि सुधार, शिक्षा नीति, और औद्योगिक विकास से जुड़े कई विधेयक यहीं पारित हुए।
बिहार विधान सभा के प्रमुख पदाधिकारी
1. अध्यक्ष:
विधान सभा के अध्यक्ष सदन की कार्यवाही का संचालन करते हैं। वे सभी बहसों और चर्चा में निष्पक्षता बनाए रखने के लिए जिम्मेदार होते हैं।
2. उपाध्यक्ष:
अध्यक्ष की अनुपस्थिति में सदन का संचालन उपाध्यक्ष करते हैं।
3. मुख्यमंत्री:
राज्य सरकार के प्रमुख के रूप में मुख्यमंत्री कार्यपालिका का नेतृत्व करते हैं और विधान सभा में सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
4. नेता प्रतिपक्ष:
विधान सभा में विपक्ष के नेता सरकार की नीतियों और कार्यों पर सवाल उठाने और चर्चा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
बिहार विधान सभा की चुनौतियां
1. विधायिका और कार्यपालिका के बीच समन्वय:
कई बार विधान सभा और राज्य सरकार के बीच तालमेल की कमी देखी जाती है, जिससे नीतियों का प्रभावी कार्यान्वयन बाधित होता है।
2. भ्रष्टाचार और अनियमितताएं:
कुछ सदस्यों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं, जो लोकतंत्र की नींव को कमजोर करते हैं।
3. विकास की असमानता:
बिहार के विभिन्न जिलों में विकास की असमानता को विधान सभा में बार-बार उठाया गया है, लेकिन इसे पूरी तरह हल करना अब भी चुनौती बना हुआ है।
4. जन प्रतिनिधियों की जवाबदेही:
कई बार देखा गया है कि निर्वाचित प्रतिनिधि जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने में असफल रहते हैं।
बिहार विधान सभा का भविष्य
बिहार विधान सभा के समक्ष आधुनिक समय की चुनौतियों का सामना करते हुए प्रगतिशील निर्णय लेने की आवश्यकता है। डिजिटलीकरण और तकनीकी सशक्तिकरण के माध्यम से इसकी कार्यप्रणाली में सुधार लाया जा सकता है। साथ ही, सदस्यों को जनता के प्रति अधिक जवाबदेह और पारदर्शी बनाना आवश्यक है।
निष्कर्ष
बिहार विधान सभा लोकतांत्रिक प्रणाली का एक अभिन्न अंग है। यह राज्य के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास के लिए महत्वपूर्ण मंच प्रदान करता है। इसके सदस्यों पर जनता की अपेक्षाओं को पूरा करने और नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की जिम्मेदारी है। इतिहास की गवाह रही यह संस्था, यदि अपनी कमियों पर ध्यान देकर सुधार करे, तो बिहार को एक प्रगतिशील और समृद्ध राज्य बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।