बिहार, भारतीय उपमहाद्वीप का एक महत्वपूर्ण राज्य, अपनी अद्वितीय राजनीतिक सक्रियता और सामाजिक संरचना के लिए जाना जाता है। यहां की राजनीति का इतिहास और वर्तमान परिदृश्य भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में एक विशेष स्थान रखता है। जातीय संरचना, सामाजिक आंदोलनों, और विकास की चुनौतियों के कारण बिहार की राजनीति अन्य राज्यों से अलग और जटिल है।
इतिहास और पृष्ठभूमि
बिहार की राजनीति का प्रारंभिक चरण स्वतंत्रता संग्राम के समय से ही सामाजिक चेतना और आंदोलनों पर केंद्रित रहा है। महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए चंपारण सत्याग्रह ने राज्य में स्वतंत्रता संग्राम की नींव रखी। स्वतंत्रता के बाद कांग्रेस पार्टी बिहार की राजनीति पर हावी रही, लेकिन 1970 के दशक में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में हुए ‘समग्र क्रांति’ आंदोलन ने राज्य की राजनीति को नई दिशा दी। इस आंदोलन से जातीय समीकरणों और क्षेत्रीय दलों का उदय हुआ।
जातीय समीकरण और राजनीति
बिहार की राजनीति में जातीय समीकरण एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यहां यादव, कुशवाहा, भूमिहार, ब्राह्मण, दलित, और मुस्लिम जैसे विभिन्न समुदायों का राजनीतिक परिदृश्य में गहरा प्रभाव है। लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 1990 के दशक में ‘मंडल कमीशन’ की सिफारिशों को लागू कर पिछड़े वर्गों को राजनीति के केंद्र में लाने का कार्य किया। इसके बाद नीतीश कुमार के नेतृत्व में जनता दल (यूनाइटेड) ने जातीय और सामाजिक संतुलन बनाते हुए राज्य में सुशासन और विकास की राजनीति पर जोर दिया।
सत्तारूढ़ दल और विपक्ष का समीकरण
वर्तमान में बिहार की राजनीति जनता दल (यूनाइटेड) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच गठबंधन और राजद की विपक्षी भूमिका के इर्द-गिर्द घूमती है। हालांकि, गठबंधन की राजनीति के कारण कई बार अस्थिरता भी देखी गई है। नीतीश कुमार ने अपनी छवि “सुशासन बाबू” के रूप में स्थापित की है, जबकि लालू प्रसाद यादव ने सामाजिक न्याय की राजनीति को आगे बढ़ाया।
हाल के वर्षों में महागठबंधन और भाजपा के बीच की प्रतिस्पर्धा ने राज्य की राजनीति को और जटिल बना दिया है। नीतीश कुमार का भाजपा से अलग होना और राजद के साथ नए गठबंधन ने राज्य की राजनीतिक स्थिति को फिर से परिभाषित किया है।
विकास और चुनौतियां
बिहार की राजनीति में विकास एक प्रमुख मुद्दा है। हालांकि पिछले दो दशकों में सड़क, शिक्षा, और स्वास्थ्य क्षेत्रों में सुधार हुआ है, लेकिन राज्य अब भी गरीबी, बेरोजगारी और पलायन जैसी समस्याओं से जूझ रहा है। विशेष राज्य के दर्जे की मांग और केंद्र-राज्य संबंधों पर बहस भी यहां की राजनीति का हिस्सा हैं।
साक्षरता दर बढ़ाने और महिला सशक्तिकरण के लिए सरकार ने कई योजनाएं चलाई हैं, जैसे कि साइकिल योजना और छात्रवृत्ति कार्यक्रम। फिर भी, सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में भ्रष्टाचार और नौकरशाही बाधाओं ने विकास की गति को धीमा किया है।
युवाओं और महिलाओं की भूमिका
हाल के वर्षों में बिहार की राजनीति में युवाओं और महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। रोजगार, शिक्षा, और सुरक्षा के मुद्दे युवा मतदाताओं के लिए महत्वपूर्ण बन गए हैं। महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी प्रगति हुई है, खासकर पंचायती राज संस्थानों में महिलाओं को आरक्षण दिए जाने के बाद।
आगामी राजनीतिक परिदृश्य
बिहार की राजनीति का भविष्य जातीय समीकरणों, विकास की दिशा, और केंद्र-राज्य संबंधों पर निर्भर करेगा। 2025 में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन, युवा नेतृत्व, और नए मुद्दों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।
भारतीय राजनीति में बिहार हमेशा एक निर्णायक भूमिका निभाता रहा है। यहां की राजनीति सिर्फ सत्ता का संघर्ष नहीं है, बल्कि यह सामाजिक बदलाव, आर्थिक विकास, और लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रतिबिंब भी है। आने वाले वर्षों में बिहार की राजनीति किस दिशा में जाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा।