भारत का राष्ट्रीय आंदोलन एक लंबी और संघर्षपूर्ण यात्रा थी, जिसमें विभिन्न प्रांतों ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बिहार ने इस आंदोलन में न केवल सक्रिय भाग लिया, बल्कि यह स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख केंद्रों में से एक बना। यहाँ के स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी जान की परवाह किए बिना ब्रिटिश शासन के विरुद्ध संघर्ष किया। बिहार की भूमि ने कई महान स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया, जिन्होंने अपने अद्वितीय योगदान से भारत के स्वतंत्रता संग्राम को गति दी।
यह लेख बिहार के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को विस्तार से प्रस्तुत करेगा, जिसमें प्रमुख आंदोलन, नेता, घटनाएँ और बिहार के समाज पर इस संघर्ष के प्रभावों की चर्चा की जाएगी।
राष्ट्रीय आंदोलन में बिहार का योगदान
बिहार ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 तक स्वतंत्रता प्राप्ति तक के हर महत्वपूर्ण आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस संघर्ष में किसानों, मजदूरों, छात्रों, महिलाओं और आम जनता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1857 का स्वतंत्रता संग्राम और बिहार
1857 का विद्रोह भारत का पहला संगठित स्वतंत्रता संग्राम था। इस संग्राम में बिहार की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण रही। जगदीशपुर के कुंवर वीर कुंवर सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियार उठाकर उन्हें कड़ी चुनौती दी। 80 वर्ष की उम्र में भी वे अपने ओजस्वी नेतृत्व के कारण अंग्रेजों को परास्त करने में सफल रहे।
- वीर कुंवर सिंह: उन्होंने आरा में अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह किया और अपनी कुशल रणनीति से अंग्रेजी सेना को कई बार हराया।
- अमर सिंह: कुंवर सिंह के भाई अमर सिंह ने भी विद्रोह में भाग लिया और अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
- पटना का विद्रोह: पटना में पीर अली खाँ जैसे क्रांतिकारियों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया।
इस विद्रोह को दबाने में अंग्रेज सफल हुए, लेकिन इसने बिहार में स्वतंत्रता संग्राम की नींव रख दी।
गांधीजी और बिहार का असहयोग आंदोलन (1919-1922)
महात्मा गांधी के नेतृत्व में 1919 में असहयोग आंदोलन की शुरुआत हुई। बिहार इस आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र बना।
चंपारण सत्याग्रह (1917)

चंपारण सत्याग्रह बिहार के स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐतिहासिक अध्याय है। महात्मा गांधी ने यहाँ नील किसानों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और ब्रिटिश शासन को झुकने पर मजबूर किया।
- कारण: ब्रिटिश सरकार नील की खेती को जबरन किसानों पर थोप रही थी।
- प्रभाव: यह महात्मा गांधी का पहला सत्याग्रह था, जिसने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय बना दिया।
- महत्वपूर्ण व्यक्ति: डॉ. राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, मजहरुल हक, रामनवमी प्रसाद, एवं अन्य स्थानीय नेता।
असहयोग आंदोलन (1920-1922)

महात्मा गांधी के आह्वान पर बिहार में असहयोग आंदोलन ने जोर पकड़ा। इस दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ हुईं:
- सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का बहिष्कार किया गया।
- विदेशी वस्त्रों की होली जलाई गई।
- जमींदारों के खिलाफ किसान संगठित हुए।
राजेंद्र प्रसाद, ब्रजकिशोर प्रसाद, और अनुग्रह नारायण सिंह इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे।
साइमन कमीशन और बिहार (1928)

जब 1928 में साइमन कमीशन भारत आया, तो पूरे देश की तरह बिहार में भी इसका जोरदार विरोध हुआ। इस दौरान पटना और अन्य शहरों में व्यापक प्रदर्शन हुए।
- जेपी (जयप्रकाश नारायण) और सच्चिदानंद सिन्हा जैसे युवा नेताओं ने विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व किया।
- विद्यार्थियों और युवाओं ने सक्रिय भागीदारी निभाई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934)

महात्मा गांधी द्वारा 1930 में दांडी मार्च के साथ सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया गया। बिहार इस आंदोलन का प्रमुख केंद्र बना।
- नमक सत्याग्रह: बिहार में भी नमक सत्याग्रह हुआ, जहाँ लोगों ने ब्रिटिश कानूनों को तोड़ा।
- पटना, मुंगेर और भागलपुर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए।
- महिलाओं की भागीदारी: बिहार की महिलाओं ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिनमें जयप्रभा नारायण और सुचेता कृपलानी प्रमुख थीं।
भारत छोड़ो आंदोलन और बिहार (1942)

8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” की घोषणा की। बिहार ने इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- पटना, गया, भागलपुर और अन्य शहरों में जबरदस्त प्रदर्शन हुए।
- जेपी (जयप्रकाश नारायण) और रामानंद तिवारी ने भूमिगत आंदोलन का नेतृत्व किया।
- विद्यार्थियों और किसानों ने मिलकर सरकारी प्रतिष्ठानों पर हमले किए।
बिहार में यह आंदोलन बेहद उग्र रूप में सामने आया और यहाँ के युवाओं ने अपनी जान की परवाह किए बिना आजादी के लिए संघर्ष किया।
बिहार के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
- राजेंद्र प्रसाद – स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति, गांधीजी के सहयोगी और बिहार के प्रमुख नेता।
- अनुग्रह नारायण सिंह – बिहार में कांग्रेस के मजबूत स्तंभ और स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा।
- जयप्रकाश नारायण – भारत छोड़ो आंदोलन के प्रमुख नेता और समाजवादी विचारधारा के समर्थक।
- वीर कुंवर सिंह – 1857 के विद्रोह के नायक।
- बाबू कुंवर सिंह – 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष करने वाले वीर योद्धा।
- सच्चिदानंद सिन्हा – संविधान सभा के सदस्य और बिहार के प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी।
- रामदयालु सिंह – स्वदेशी आंदोलन के प्रमुख नेता।
बिहार और स्वतंत्रता संग्राम का प्रभाव
बिहार के स्वतंत्रता संग्राम ने न केवल ब्रिटिश शासन को कमजोर किया, बल्कि यहाँ के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को भी प्रभावित किया।
1. सामाजिक प्रभाव
- महिलाओं की भागीदारी बढ़ी।
- जाति और धर्म के भेदभाव में कमी आई।
- शिक्षा और राजनीतिक चेतना बढ़ी।
2. आर्थिक प्रभाव
- जमींदारी प्रथा पर सवाल उठे।
- स्वदेशी आंदोलन के कारण स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा मिला।
3. राजनीतिक प्रभाव
- स्वतंत्रता के बाद बिहार भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण केंद्र बना।
- कांग्रेस और समाजवादी आंदोलन की जड़ें मजबूत हुईं।
निष्कर्ष
बिहार ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चाहे 1857 की क्रांति हो, चंपारण सत्याग्रह, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन या भारत छोड़ो आंदोलन—हर चरण में बिहार के वीर सपूतों ने अपनी कुर्बानियाँ दीं। इस संघर्ष में आम जनता, किसान, मजदूर, विद्यार्थी और महिलाएँ भी कंधे से कंधा मिलाकर लड़े।
बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने देश को आजादी दिलाने में जो भूमिका निभाई, वह इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में दर्ज है।