भूमिका
बिहार, भारत के स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण केंद्र रहा है। यहाँ की जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई विद्रोहों और आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया। 18वीं शताब्दी से लेकर 20वीं शताब्दी तक बिहार ने कई ब्रिटिश विरोधी संघर्षों का नेतृत्व किया। इस लेख में, बिहार में हुए प्रमुख ब्रिटिश विरोधी संघर्षों का विस्तृत विवरण दिया गया है।
प्रारंभिक ब्रिटिश विरोधी संघर्ष (1764-1857)
1. बक्सर का युद्ध (1764)

बक्सर का युद्ध 22 अक्टूबर 1764 को हुआ था, जिसमें बिहार के नवाब मीर कासिम, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी। हालांकि, अंग्रेजों की सेना ने इस युद्ध में जीत हासिल की और इसके बाद बिहार में ब्रिटिश शासन मजबूत हो गया।
2. चुआड़ और पाइक विद्रोह (1766-1817)

बिहार और झारखंड के आदिवासियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ कई विद्रोह किए। 1766 में पहली बार चुआड़ विद्रोह हुआ, जिसमें स्थानीय जमींदार और आदिवासी नेता शामिल थे। इसी तरह, 1817 में पाइक विद्रोह हुआ, जिसमें स्थानीय किसान और सैनिकों ने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी।
3. 1857 का विद्रोह

1857 का विद्रोह भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम के रूप में जाना जाता है। बिहार में इस विद्रोह की अगुवाई जगदीशपुर के राजा वीर कुंवर सिंह ने की थी। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ कई युद्ध लड़े और उन्हें भारी नुकसान पहुँचाया। कुंवर सिंह की वीरता बिहार के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है।
ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रमुख आंदोलन (1858-1947)
4. नील विद्रोह (1867-1869)

बिहार के किसानों को अंग्रेजों द्वारा नील की खेती के लिए मजबूर किया जाता था। इस अत्याचार के खिलाफ किसानों ने विद्रोह किया, जिसे “नील विद्रोह” कहा जाता है। यह आंदोलन बंगाल और बिहार में फैला और किसानों को ब्रिटिश दमन से राहत दिलाने में मददगार साबित हुआ।
5. चंपारण सत्याग्रह (1917)

महात्मा गांधी ने बिहार के चंपारण में किसानों की स्थिति को सुधारने के लिए 1917 में सत्याग्रह किया। यह गांधी का पहला बड़ा आंदोलन था और इसने ब्रिटिश हुकूमत को झुकने पर मजबूर कर दिया। इस आंदोलन ने बिहार में स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी।
6. असहयोग आंदोलन (1920-1922)

महात्मा गांधी द्वारा चलाए गए असहयोग आंदोलन में बिहार की जनता ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। पटना, मुजफ्फरपुर, गया, भागलपुर जैसे शहरों में इस आंदोलन का व्यापक प्रभाव पड़ा। विद्यार्थियों ने स्कूलों का बहिष्कार किया और किसानों ने कर न देने की नीति अपनाई।
7. सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930-1934)

इस आंदोलन के तहत बिहार के स्वतंत्रता सेनानियों ने नमक कानून तोड़ा और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया। डॉ. राजेंद्र प्रसाद, अनुग्रह नारायण सिंह, जयप्रकाश नारायण और रामवृक्ष बेनीपुरी जैसे नेता इस आंदोलन में सक्रिय रहे।
8. भारत छोड़ो आंदोलन (1942)

भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान बिहार में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। पटना, आरा, मुजफ्फरपुर, गया, दरभंगा, पूर्णिया जैसे शहरों में अंग्रेजी सरकार के खिलाफ बगावत हुई। जयप्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया जैसे नेताओं ने आंदोलन को संगठित किया।
प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी
1. वीर कुंवर सिंह (1857 के विद्रोह के नायक)

कुंवर सिंह 80 वर्ष की आयु में भी अंग्रेजों के खिलाफ वीरतापूर्वक लड़े। उन्होंने अपनी अंतिम लड़ाई जगदीशपुर में लड़ी और ब्रिटिश सेना को हराया।
2. राजेंद्र प्रसाद

डॉ. राजेंद्र प्रसाद बिहार के स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख नेता थे। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े और गांधीजी के साथ कई आंदोलनों में भाग लिया।
3. जयप्रकाश नारायण

जेपी ने भारत छोड़ो आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे समाजवाद के बड़े समर्थक थे और स्वतंत्रता के बाद भी भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते रहे।
4. रामवृक्ष बेनीपुरी

बेनीपुरी एक स्वतंत्रता सेनानी और पत्रकार थे। उन्होंने अपने लेखों और भाषणों के माध्यम से जनता को ब्रिटिश शासन के खिलाफ जागरूक किया।
बिहार के ब्रिटिश विरोधी संघर्ष की विशेषताएँ
- आदिवासी और किसान विद्रोह: बिहार में आदिवासी और किसानों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ कई बार संघर्ष किया।
- महात्मा गांधी का प्रभाव: बिहार में गांधीवादी आंदोलनों की गहरी छाप रही।
- छात्रों की भागीदारी: बिहार के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों के छात्रों ने स्वतंत्रता संग्राम में बढ़-चढ़कर भाग लिया।
- सशस्त्र क्रांति और अहिंसक आंदोलन: यहाँ के संघर्ष में अहिंसा और सशस्त्र क्रांति, दोनों का मिश्रण देखने को मिलता है।
निष्कर्ष
बिहार का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है। यहाँ की जनता ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अनेक आंदोलन किए और देश को स्वतंत्रता दिलाने में अपना योगदान दिया। वीर कुंवर सिंह से लेकर जयप्रकाश नारायण तक, बिहार ने कई वीर सपूत दिए, जिन्होंने ब्रिटिश सत्ता को चुनौती दी। इस संघर्ष का प्रभाव केवल बिहार तक सीमित नहीं था, बल्कि इसने पूरे देश को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया।
यह लेख बिहार के ब्रिटिश विरोधी संघर्ष की पूरी कहानी को संक्षेप में प्रस्तुत करता है। यदि आप किसी विशेष आंदोलन या सेनानी के बारे में और जानकारी चाहते हैं, तो कृपया बताएं।