Friday, July 4, 2025
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बिहार में जल संसाधन एवं प्रबंधन

परिचय

बिहार भारत का एक प्रमुख कृषि-प्रधान राज्य है, जहाँ जल संसाधन का अत्यधिक महत्व है। यह राज्य गंगा, कोसी, गंडक और सोन जैसी बड़ी नदियों से समृद्ध है, जो यहाँ की अर्थव्यवस्था और जीवनशैली का मुख्य आधार हैं। जल संसाधनों का उचित प्रबंधन बिहार की सतत विकास यात्रा के लिए आवश्यक है, क्योंकि यह कृषि, पीने के पानी, उद्योग और जलविद्युत उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

हालांकि, बिहार में जल संसाधनों की अधिकता के बावजूद, बाढ़ और सूखे की दोहरी समस्याएँ बनी हुई हैं। इस लेख में बिहार के जल संसाधनों, उनकी चुनौतियों, सरकारी योजनाओं और जल प्रबंधन की संभावनाओं पर विस्तृत चर्चा की जाएगी।


बिहार में जल संसाधनों का स्वरूप

बिहार की भौगोलिक स्थिति इसे जल संसाधनों की दृष्टि से समृद्ध बनाती है। यहाँ मुख्य रूप से तीन प्रकार के जल संसाधन पाए जाते हैं—

1. सतही जल संसाधन

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बिहार में कई प्रमुख नदियाँ बहती हैं, जो सतही जल का प्रमुख स्रोत हैं। इनमें प्रमुख नदियाँ हैं:

  • गंगा नदी: यह बिहार की जीवनरेखा मानी जाती है और राज्य के 12 जिलों से होकर गुजरती है।
  • कोसी नदी: “बिहार का शोक” कही जाने वाली यह नदी नेपाल से निकलती है और बाढ़ की समस्या उत्पन्न करती है।
  • गंडक नदी: यह भी नेपाल से निकलती है और उत्तर बिहार की कृषि व्यवस्था में योगदान देती है।
  • सोन नदी: यह झारखंड से निकलती है और दक्षिण बिहार में जल आपूर्ति का प्रमुख स्रोत है।

इसके अलावा, राज्य में कई झीलें, तालाब और जलाशय भी सतही जल संसाधनों में शामिल हैं।

2. भू-जल संसाधन

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बिहार का बड़ा भू-भाग जलोढ़ मैदानों से बना है, जिससे यहाँ भू-जल भंडार भरपूर मात्रा में उपलब्ध है। नलकूपों और कुओं के माध्यम से बड़ी संख्या में किसान सिंचाई के लिए भू-जल का उपयोग करते हैं।

3. वर्षा जल

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बिहार में वार्षिक वर्षा औसतन 1000-1200 मिमी होती है। हालांकि, मानसून की अनिश्चितता के कारण वर्षा जल संग्रहण और प्रबंधन की आवश्यकता बढ़ जाती है।


बिहार में जल संसाधनों से जुड़ी समस्याएँ

1. बाढ़ की समस्या

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बिहार में हर साल कोसी, गंडक, बागमती और महानंदा नदियों में बाढ़ आती है। यह समस्या खासकर उत्तर बिहार में अधिक विकराल रूप धारण कर लेती है। बाढ़ से हजारों हेक्टेयर फसल नष्ट हो जाती है और लाखों लोग विस्थापित होते हैं।

2. सूखा और जल संकट

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दक्षिण बिहार के कई जिले जल संकट से जूझते हैं, जहाँ वर्षा कम होती है और जल संग्रहण की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है। गंगा के दक्षिणी भाग में स्थित जिलों में अक्सर सूखा पड़ता है, जिससे कृषि प्रभावित होती है।

3. भू-जल दोहन

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बिहार में कृषि का बड़ा हिस्सा भू-जल पर निर्भर करता है। अत्यधिक दोहन के कारण कई जिलों में भू-जल स्तर गिर रहा है, जिससे भविष्य में जल संकट गहराने की आशंका है।

4. जल प्रदूषण

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औद्योगिक कचरे, नगर निगम के अपशिष्ट और रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग के कारण गंगा, पुनपुन और अन्य नदियों में जल प्रदूषण बढ़ रहा है।

5. जल प्रबंधन की अपर्याप्तता

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बिहार में जल संरक्षण एवं प्रबंधन की योजनाएँ तो हैं, लेकिन इनके क्रियान्वयन में कई खामियाँ हैं। जल संग्रहण की आधुनिक तकनीकों का अभाव और जागरूकता की कमी जल संसाधनों के सतत उपयोग में बाधा बनती है।


बिहार में जल संसाधन प्रबंधन की रणनीतियाँ

जल संसाधनों का उचित प्रबंधन बिहार की सामाजिक और आर्थिक प्रगति के लिए आवश्यक है। इसके लिए सरकार विभिन्न स्तरों पर कार्य कर रही है।

1. बाढ़ नियंत्रण एवं जल निकासी योजनाएँ

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  • बिहार सरकार ने नेपाल सरकार के साथ मिलकर बाढ़ नियंत्रण हेतु बाँध और तटबंध निर्माण की परियोजनाएँ चलाई हैं।
  • जल निकासी योजनाओं के तहत जलभराव वाले क्षेत्रों में नहरों और ड्रेनेज सिस्टम का विकास किया जा रहा है।

2. जल संचयन एवं भू-जल रिचार्ज

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  • “जल-जीवन-हरियाली” अभियान के तहत वर्षा जल संचयन, तालाबों का पुनर्निर्माण और चेक डैम बनाए जा रहे हैं।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में कुओं और पोखरों को गहरा करके भू-जल स्तर बढ़ाने के प्रयास किए जा रहे हैं।

3. सिंचाई प्रबंधन

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  • राज्य में “हर खेत को पानी” योजना के तहत अधिक से अधिक भूमि को सिंचाई सुविधा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है।
  • पारंपरिक जल स्रोतों (जैसे आहर-पाइन प्रणाली) को पुनर्जीवित किया जा रहा है।

4. जल प्रदूषण रोकने के उपाय

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  • बिहार सरकार “नमामि गंगे” परियोजना के तहत गंगा नदी की सफाई पर विशेष ध्यान दे रही है।
  • औद्योगिक इकाइयों पर जल शुद्धिकरण संयंत्र लगाने की सख्त आवश्यकता है।

5. सामुदायिक भागीदारी और जनजागरूकता

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  • गाँवों में जल संरक्षण को लेकर जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं।
  • किसान और ग्रामीण लोग अब माइक्रो-इरिगेशन (ड्रिप और स्प्रिंकलर सिंचाई) जैसी जल बचत तकनीकों को अपना रहे हैं।

भविष्य के लिए संभावनाएँ एवं सुझाव

  1. एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) अपनाकर जल की उपलब्धता, उपयोग और पुनर्भरण को संतुलित किया जाए।
  2. वर्षा जल संचयन को हर घर और कृषि क्षेत्र में अनिवार्य किया जाए।
  3. बाढ़ एवं सूखे से बचाव के लिए जल भंडारण अवसंरचना (डैम, रिजरवायर) को मजबूत किया जाए।
  4. नदियों के किनारे वृक्षारोपण और जल पुनर्भरण क्षेत्रों का संरक्षण किया जाए।
  5. भू-जल स्तर को बनाए रखने के लिए कृषि में जल-कुशल तकनीकों को बढ़ावा दिया जाए।

निष्कर्ष

बिहार जल संसाधनों की दृष्टि से एक समृद्ध राज्य है, लेकिन बाढ़, सूखा और जल प्रदूषण जैसी चुनौतियाँ जल प्रबंधन को जटिल बनाती हैं। सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाएँ जल प्रबंधन में सहायक हो रही हैं, लेकिन इनके प्रभावी क्रियान्वयन और आम जनता की भागीदारी के बिना कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सकता। जल संरक्षण और सतत उपयोग की दिशा में यदि ठोस कदम उठाए जाएँ, तो बिहार जल संकट से मुक्त होकर जल समृद्ध राज्य बन सकता है।

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