Friday, July 4, 2025
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बिहार की बौद्धिक विरासत: ज्ञान और परंपरा की भूमि

भूमिका
बिहार भारतीय इतिहास और संस्कृति की बौद्धिक धरोहर का केंद्र रहा है। प्राचीन काल से ही यह क्षेत्र शिक्षा, दर्शन, साहित्य और राजनीति का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ दुनिया की पहली विश्वविद्यालयों में से एक, नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों की स्थापना हुई थी। बौद्ध, जैन, हिंदू और सूफी परंपराओं ने यहाँ की बौद्धिक विरासत को समृद्ध किया।


1. प्राचीन बिहार: ज्ञान और शिक्षा का केंद्र

बिहार का नाम आते ही नालंदा और विक्रमशिला विश्वविद्यालयों का स्मरण होता है। यह प्राचीन काल में भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए ज्ञान का प्रकाश स्तंभ था।

1.1 नालंदा विश्वविद्यालय

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नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त प्रथम (415-455 ई.) ने की थी। यह विश्वविद्यालय बौद्ध अध्ययन का प्रमुख केंद्र था, लेकिन यहाँ पर हिंदू और अन्य दर्शनों का भी अध्ययन होता था। इस विश्वविद्यालय में विभिन्न देशों से विद्यार्थी आते थे, जिनमें चीन, जापान, कोरिया, तिब्बत और मध्य एशिया शामिल थे।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • लगभग 10,000 विद्यार्थी और 2,000 शिक्षक
  • विविध विषयों का अध्ययन: बौद्ध धर्म, व्याकरण, दर्शन, गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, कला आदि
  • प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग और इत्सिंग ने यहाँ अध्ययन किया
  • बख्तियार खिलजी के आक्रमण (1193 ई.) में इसे नष्ट कर दिया गया

1.2 विक्रमशिला विश्वविद्यालय

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8वीं-9वीं शताब्दी में पाल वंश के शासक धर्मपाल (770-810 ई.) ने विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की। यह भी बौद्ध शिक्षा का एक प्रमुख केंद्र था और विशेष रूप से तंत्र एवं महायान बौद्ध धर्म का अध्ययन होता था।

प्रमुख विशेषताएँ:

  • यह विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म की वज्रयान शाखा के अध्ययन के लिए प्रसिद्ध था।
  • यहाँ से कई महान विद्वान निकले, जिनमें अतीश दीपंकर श्रीज्ञान प्रमुख थे।
  • 12वीं शताब्दी में तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा इसे भी नष्ट कर दिया गया।

1.3 अन्य शिक्षण केंद्र

  • ओदंतपुरी विश्वविद्यालय (गया)
  • सुभारक विश्वविद्यालय (भागलपुर)
  • मिथिला का तक्षशिला – जहाँ पर न्याय और तर्कशास्त्र की पढ़ाई होती थी।

2. धार्मिक और दार्शनिक विरासत

2.1 बौद्ध धर्म और बिहार

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बिहार बौद्ध धर्म का उद्गम स्थल है। भगवान बुद्ध ने गया (बोधगया) में बोधि वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया और फिर सारनाथ में पहला उपदेश दिया।

बिहार में बौद्ध धर्म से जुड़ी कई महत्वपूर्ण स्थल हैं:

  • बोधगया – जहाँ गौतम बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ।
  • राजगीर – जहाँ बुद्ध ने कई उपदेश दिए।
  • नालंदा – बौद्ध शिक्षा का प्रमुख केंद्र।
  • वैशाली – जहाँ बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश दिया।

2.2 जैन धर्म और बिहार

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  • महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर, का जन्म वैशाली में हुआ था।
  • पावापुरी में ही उनका निर्वाण हुआ।
  • बिहार जैन धर्म के कई प्रमुख स्थलों का केंद्र है।

2.3 हिंदू दर्शन और बिहार

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  • आदि शंकराचार्य ने मिथिला में वेदांत पर शास्त्रार्थ किया था।
  • मिथिला न्याय दर्शन (न्याय शास्त्र) का प्रमुख केंद्र था।
  • कई प्रसिद्ध पंडित और विद्वान यहाँ से निकले।

3. प्राचीन बिहार: ज्ञान और शिक्षा का केंद्र

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3.1 संस्कृत साहित्य

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बिहार का मिथिला क्षेत्र संस्कृत साहित्य का प्रमुख केंद्र रहा है। यहाँ के विद्वान न्याय, व्याकरण, और दर्शन में अग्रणी रहे हैं।

प्रसिद्ध विद्वानों में शामिल हैं:

  • गंगेश उपाध्याय (नव्य न्याय दर्शन के जनक)
  • उदयनाचार्य (तर्कशास्त्र के विद्वान)
  • विद्यापति (संस्कृत और मैथिली के कवि)

3.2 संस्कृत साहित्य

  • रामधारी सिंह दिनकर – राष्ट्रीय कवि और “रश्मिरथी” के रचनाकार।
  • फणीश्वरनाथ रेणु – “मैला आँचल” के लेखक, जिन्होंने आंचलिक हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
  • रही मासूम रजा – प्रसिद्ध उर्दू लेखक, जिन्होंने “आधा गाँव” लिखा।

3.3 मैथिली और भोजपुरी साहित्य

  • विद्यापति – मैथिली भाषा के महान कवि।
  • भिखारी ठाकुर – भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोक कवि।

4. आधुनिक बिहार और शिक्षा

बिहार में आधुनिक शिक्षा व्यवस्था भी समृद्ध रही है। प्रमुख विश्वविद्यालयों में शामिल हैं:

  • पटना विश्वविद्यालय
  • ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय
  • बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय
  • नालंदा विश्वविद्यालय (पुनर्निर्माण)

5. बिहार की वैज्ञानिक और गणितीय विरासत

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  • आर्यभट्ट – प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलशास्त्री, जिन्होंने शून्य की अवधारणा दी।
  • काशीश रंजन मिश्र – प्रसिद्ध वैज्ञानिक।

6. निष्कर्ष

बिहार की बौद्धिक विरासत अत्यंत समृद्ध और गौरवशाली रही है। प्राचीन विश्वविद्यालयों, धर्म और दर्शन, साहित्य, विज्ञान और गणित में इसके योगदान ने भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व को प्रभावित किया है। आज भी बिहार की इस महान बौद्धिक परंपरा को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है ताकि यह फिर से शिक्षा और ज्ञान का केंद्र बन सके।

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