परिचय
भारत की पारंपरिक लोक कलाओं में से एक मधुबनी चित्रकला अपनी विशिष्ट शैली और रंगों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इस कला को संजोने और आगे बढ़ाने में कई लोक कलाकारों का योगदान रहा है, जिनमें से एक प्रमुख नाम है दुलारी देवी। उन्होंने न केवल अपनी कला से इस परंपरा को जीवंत रखा बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की महिलाओं को भी सशक्त किया। उनकी जीवन यात्रा संघर्ष, संकल्प और सफलता की प्रेरणादायक कहानी है।
जीवन परिचय
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष
दुलारी देवी का जन्म बिहार के मधुबनी जिले में हुआ था। वे समाज के गरीब तबके से आती थीं और उनका बचपन कठिनाइयों से भरा था। एक मछुआरा समुदाय से होने के कारण, उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। छोटी उम्र में ही उन्होंने घरेलू कामों में हाथ बंटाना शुरू कर दिया था।
बचपन में उन्होंने पढ़ाई नहीं की, क्योंकि उनके परिवार में शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी। बचपन से ही वे दूसरों के घरों में काम करती थीं और जीविका के लिए कठिन परिश्रम करना उनकी मजबूरी थी। परंतु उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था, जो उन्हें कला के क्षेत्र में ले गया।
मधुबनी चित्रकला से परिचय

दुलारी देवी का जीवन तब बदला जब उन्होंने मधुबनी चित्रकला से जुड़ने का अवसर पाया। वे एक प्रसिद्ध लोक कलाकार महासुंदरी देवी के घर घरेलू नौकरानी के रूप में काम करने लगीं। वहाँ उन्होंने पहली बार मधुबनी चित्रकला को करीब से देखा। वे चित्रों के रंगों, आकृतियों और उनकी कहानियों से मंत्रमुग्ध हो गईं।
धीरे-धीरे उनका झुकाव इस कला की ओर बढ़ता गया। जब उन्होंने चित्रकला को सीखने की इच्छा जाहिर की, तो महासुंदरी देवी ने उनका उत्साह देखा और उन्हें प्रोत्साहित किया। यहीं से उनके जीवन का नया अध्याय शुरू हुआ।
मधुबनी चित्रकला में योगदान
कला शैली और विषयवस्तु

दुलारी देवी ने मधुबनी चित्रकला की कोहबर शैली में महारत हासिल की, जिसमें पौराणिक कथाएँ, प्रकृति और विवाह संबंधी चित्र बनाए जाते हैं। उनके चित्रों में भगवान राम-सीता, कृष्ण-राधा, दुर्गा, सरस्वती आदि देवी-देवताओं के चित्रों के साथ-साथ सामाजिक विषयों को भी दर्शाया जाता है।
उन्होंने अपनी कला के माध्यम से महिलाओं की स्थिति, गरीबी, पर्यावरण संरक्षण और लैंगिक समानता जैसे मुद्दों को उकेरा। उनकी कूची और रंगों ने सिर्फ धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को ही नहीं, बल्कि सामाजिक समस्याओं को भी उजागर किया।
महिला सशक्तिकरण में योगदान
दुलारी देवी की सफलता ने कई अन्य महिलाओं को प्रेरित किया। उन्होंने अपने जैसी अन्य वंचित वर्ग की महिलाओं को मधुबनी कला सिखाई, जिससे वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन सकें। उन्होंने कई वर्कशॉप और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं को प्रशिक्षित किया, जिससे इस पारंपरिक कला को भी बढ़ावा मिला।
सम्मान और पुरस्कार

दुलारी देवी की मेहनत और समर्पण को सरकार और कला जगत ने भी सराहा। उन्हें कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार पद्मश्री (2021) शामिल है। यह सम्मान उन्हें भारतीय लोक कला को आगे बढ़ाने के लिए दिया गया।
इसके अलावा, उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भी अपनी कला का प्रदर्शन किया। उनकी पेंटिंग्स भारत के अलावा विदेशों में भी लोकप्रिय हुईं, जिससे मधुबनी कला को वैश्विक पहचान मिली।
दुलारी देवी की प्रेरणादायक कहानी
दुलारी देवी की कहानी हमें यह सिखाती है कि परिस्थितियाँ चाहे जितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हमारे अंदर कुछ सीखने और आगे बढ़ने का जुनून है, तो सफलता निश्चित है। एक गरीब परिवार में जन्म लेकर, घरेलू नौकरानी से कला की दुनिया में प्रतिष्ठित नाम बनने तक की उनकी यात्रा बेहद प्रेरणादायक है।
उन्होंने यह भी साबित किया कि कला सिर्फ एक शौक नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम भी बन सकती है।
निष्कर्ष
दुलारी देवी भारतीय लोक कला की जीवंत उदाहरण हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से न केवल मधुबनी चित्रकला को नई ऊँचाइयाँ दीं, बल्कि अपने जैसी कई महिलाओं को आत्मनिर्भर बनने की राह भी दिखाई। उनका जीवन संघर्ष और सफलता की कहानी कहता है, जो हमें यह सीख देता है कि सच्ची लगन और मेहनत से किसी भी लक्ष्य को पाया जा सकता है।
आज वे न केवल बिहार, बल्कि पूरे भारत और विश्व में लोक कला की एक प्रतिष्ठित हस्ती के रूप में पहचानी जाती हैं। उनका योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा।